केल्याने होत आहे रे
प्रकाशक :
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© सर्व हक्क प्रकाशकाचे स्वाधीन
प्रथम आवृत्ती :
गुढीपाडवा शके १९२६
(२१ मार्च २००४)
किंमत : ३० रुपये मात्र
अनुक्रमणिका
* प्रशिक्षण वर्गांचा आढावा. | २ |
*प्रस्तावना | ३ |
* काही अनुभव...... | |
१ चोखपणा महत्त्वाचा ..... | ७ |
२ दूर दृष्टीनेसंकटावर मात... | ८ |
३ आगळीवेगळी कलात्मकवाट...... | ११ |
४ पारंपारिक कलेला आधुनिकजोड ...... | १३ |
५ चिकाटीने करत राहायचं.. | १५ |
६ अनुभवातून उद्योजकतेकडे... | १७ |
७ स्वावलंबनासाठी सततची धडपड..... | १८ |
८ भक्कम पायाक्कम पाया महत्त्वाचा ..... | १९ |
९ योग्य उद्योगांची सांगड....... | २१ |
१० अथक परिश्रमांचे फळ ...... | २२ |
११ नित्य नवे शिकेल, तोच स्पर्धेत टिकेल... | २३ |
थेंबे थेंबे तळे साचे.... . | २५ |
१२ उद्योजिकेच्या घरी लक्ष्मी वास करी.. | २६ |
१३ बाईमोठी जिद्दीची... | २८ |
१४ उद्योगाचं रोपटंमोठं केल.. | २९ |
१५ योग्यव्यवसायाची निवड... | ३० |
१६ केलंकी सारं जमत जातं... | ३२ |
* उद्योजकतेचे इतर काही अनुभव ............ | ३४ |
* समारोप............... | ३६ |
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