धर्मराजाचे दुर्गास्तवन
श्री गणेशाय नमः|
नगरी प्रवेशले पंडुनंदन| तो देखिले दुर्गास्थान|
धर्मराजा करी स्तवन| जगदंबेचे तेधवा||१||
जय जय दुर्गे भुवनेश्वरी| यशोदागर्भसंभवकुमारी|
इन्दिरारमणसहोदरी| नारायणी चंडीके अंबीके||२||
जय जय जगदंबे भवानी| मूळप्रकृती प्रणवरुपिणी|
ब्रह्मानंदपददायिनी| चिद्विलासिनी जगदंबे||३||
जय जय धराधरकुमारी| सौभाग्यगंगे त्रिपुरसुंदरी|
हेरंबजननी अंतरी| प्रवेशी तू अमुचिया||४||
भक्तहृदयारविंद्रभ्रमरी| तुझिया कृपावलोकने निर्धारी|
अतिमूढ तो निगमार्थ करी| काव्यरचना अद्भुत||५||
तुझिया आपंगते करून| जन्मांधासी येती नयन|
पांगुळ धावे पवनाहून| करी गमन त्वरेने||६||
जन्माधाराभ्य जो मुका| होय वाचस्पतीसम बोलका|
तू स्वानंदसरोवरमराळिका| होसी भाविका सुप्रसन्न||७||
ब्रम्हानंदे आदि जननी| तव कृपेची नौका करुनी|
दुस्तर भवसिंधु लंघोनी| निवृत्ती तटा नेईजे||८||
जय जय आदि कुमारीके| जय जय मूळपीठनायिके|
सकल सौभाग्यदायिके| जगदंबिके मूळप्रकृती||९||
जय जय भर्गप्रियभवानी| भवनाशके भक्तवरदायिनी|
समुद्रकारके हिमनगनंदिनी| त्रिपुरसुंदरी महामाये||१०||
जय आनंदकासारमराळिके| पद्मनयन दुरितकानन पावके|
त्रिविध ताप भवमोचके| सर्व व्यापके मृडानी||११||
शिवमानस कनक लतिके| जय चातुर्य चंपक कलिके|
शुंभनिशुंभ दैत्यांतके| निजजनपालके अपर्णे||१२||
तव मुखकमल शोभा देखोनी| इंदुबिंब गेले गळोनी|
ब्रम्हादिके बाळे तान्ही| स्वानंदसदनी नीजवीसी||१३||
जीव शीव दोन्ही बालके| अंबे तुवा नीर्मीली कौतुके|
जीव तुझे स्वरुप नोळखे| म्हणोनी पडला आवर्ती||१४||
शीव तुझे स्मरणी सावचित्त| म्हणोनी अंबे तो नित्यमुक्त|
स्वनंदपद हातासी येत| कृपे तुझ्या जननीये||१५||
मेळवुनी पंचभूतांचा मेळ| तुवा रचिला ब्रह्माडगोळ|
इच्छा परतता तत्काळ| क्षणात निर्मूळ करीसी तू||१६||
अनंतबालसूर्य श्रेणी| तव प्रभेमाजी गेल्या विरोनी|
सकल सौभाग्य शुभकल्याणी| रमा रमणे वरप्रदे||१७||
शंबरारि रिपुवल्लभे| त्रैलोक्यनगरारंभस्तंभे|
आदिमाये आदिप्रभे| सकळारंभे मूळप्रकृती||१८||
जय जय करुणामृतसरीते| निजभक्तपालके गुणभरीते|
अनंत ब्रह्मांडपालके कृपावंते| आदिमाये अपर्णे||१९||
सच्चिदानंद प्रणवरुपिणी| चराचरजीव सकलव्यापिणी|
सर्गस्थित्यंतकारिणी| भवमोचनी महामाये||२०||
ऐकोनी धर्मराजाचे स्तवन| दुर्गादेवी झाली प्रसन्न|
म्हणे तव शत्रू संहारून| निज्यी स्थापीन धर्मा तू ते||२१||
तुम्ही वास करावा येथे| प्रकटो नेदी जनाते|
शत्रू क्षय पावती तुमचे हाते| सुख अद्भुत तुम्हा होय||२२||
तुवा जे केले स्तोत्रपठण| हे जो करील पठण श्रवण|
त्यासी सर्वदा रक्षीन| अंतर्बाह्य निजांगे||२३||
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