वज्र की दीवार जब भी टूटती है नींव की यह वेदना, विकराल बनकर छूटती है। दौडता है दर्द कि तलवार बनकर पत्थरों के पेटसे, नरसिंह ले अवतार। काँपती है, वज्र की दीवार।