पीडीएफ सुरेशभट इन च्या सौजन्याने छन्दोरचना १३६ t! -- ५ । - ७ ७ ७ । --]] अशी हरावर्तनीहि होऔील. २३४ * शशिमाला, * स्जस्गा माला” (हे २/१२६), मागे ५५ प्रमिता पहा. २३५ मणिराग, मागे5५१ पहा. *रश्च सौ सगुरुर्मणरागः” (केनिआ ३८). २३६ लङ्का, मागे ५२ टीप पहा. २३७ *भ्नौ म्ौ बन्धूकं” (हे २/११७). २३८ * लालिनी स्याद्या रसजगाः ।” (ममच २०). २३९ पद्मिनी हें नाव विद्याधर वा. भिडे यांनी भिजी ३८ व्या कवितेवर दिलें आहे; आधार दिलेला नाही. १७ तटी-वर्ग नाराच-विदुषी-क्षुज्ज्वला २४० तटी [I — — — — I v —] २४१ कोमला ] ں س------ ب س--[ २४२ मही ]lب س ----ں س --- I ں---[ २४३ झुपच्युत ]I ب ب س ن ں سب-- I v —] २४४ नेिलया ][ ں ! ں ں ں ں نہ ب س ن---{ २४९ भद्रिका ] - 1 ܚ ܝ ܚ - ܚ - II v —] २५० नाराच ]------ س --- ب --- ب --[ ** gエm[ッッしーッーッーlッー] २५२ पणव ]------ ں ب س ن-- l ں--[ २५३ हंसी ]--------- ں ب س نlب ---[
पान:छन्दोरचना.djvu/163
या पानाचे मुद्रितशोधन झालेले नाही