पीडीएफ सुरेशभट इन च्या सौजन्याने छन्दरचना ጀ“ጻ8 २४ गो-वर्ग ४३७ गी ]lس ن ں ں نہ د -- l ں ! ~~ں ں -- ن ں -[ [- ܚ ܐ ܝ ܚ ܝ ܚ ܝ ܚ ܝ ܚ ܐ ܚ ܝ ܚ - ܝ -- ܐ 1 IIܪ̈ܗܟܚ-37 gܢܹ** 2 ܕ݁ܶܐ [- ܚ [ ܚ ܝ ܚ ܝ ܝ ܚ ܝ ܚ ܐ ܟ - ܝ - ܚ ܢ | 1 G77ܪ&ctܟ݂** ܟ ܕ݁ܶY ४४० मञ्जहारि ] | ܢ | - ܚ - ܚ ܝ ܚ ܐ -- - ܚ - ܚ -[ ४४१ सुकेसर ] ܢ ܐ - ܚ - ܚ ܝ ܚ ܐ - ܚ - ܚ ܝ ܚ ܐ -[ ४४२ कुटजगति [ ७ ॥ ७ ७ ७ - ७ - !- - - - ॥ ७ -] ४४३ चन्द्रौरसः ]-- l ------- ن -- س - ن ں ں نہ | ں ں --[ [- ܚ | - ܚ ܝ - ܝ · ܝ | - ܚ ܝ ܚ - ܚ 1 -] Hforg4UT ܐ ܐY ४४५ मङ्गला ] ܚ | - ܝ ܚ - ܝ ܚ ܐ - ܚ ܝ ܚ - ܚ ܐ ܝ ܚ -[ टीपा ४३७ *नान्नभभ्रा गौ:” (हे २/२५८). ४३८ *नृप”ललना, *नींगा ललना' (हे २/२८४). ४३९ स्जौ नौ सू *सहचरी”; सहदळा (निस १० ३ ). ४४० मञ्जुहासिनी ** जतौ सजैौ गो भवति मञ्जुहासिनी ” ( गच्छ २/१०७); मागे मञ्जुभाषिणी २९ पहा. ४४१ सुकेसर ( हे २/२३४ ), ‘ नरनरेलैगौच रचित सुकेसरं ” ( गच्छ २/१२७ ). ४४२ ** कुटजगतिर्नजौ ससर्तुम्ताँ गुरुः ” ( गच्छ २/१०८ ). ४४३ ** म्भौ न्यौ ल्गौ चेदिह भवति च चन्द्रौरसः” ( गच्छ २/१२८). या वृत्ताची पद्यावर्तनीच पण निराळी मोडणी [।-- - - । ७ • • • • • - !- ऽ ७ -] अशी होोंधूं शकेल. ४४४ मणिभूषण, मागे सुन्दर ६४ पहा. ४४५ मङ्गला, मागे ६५ पहा. २५ पद्मावर्त-वर्ग ४४६ पद्मावर्त [। - - - - ----।--] ४४७ कान्तोत्पीडा [। - ७ ७ --। - ७ ७ --। --.] [---ں ں ------ ! -- ن ں ----- ] gSqftfddTمحکلا کلا ४४९ जलधरमाला [। ----! ७ ७ ७ ७ - - । --.] [- -- ܐ ܝ ܚ - ܚ ܝ -- ܐ -- -- -- - [] Tܗhܪ̈qnRIR ܘܪܐ
पान:छन्दोरचना.djvu/181
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