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पीडीएफ सुरेशभट इन च्या सौजन्याने छन्दोरचना RRØ 'शिवविधी? (७१७) [। - ५-७ - !- ७ ७ ७ ७ -] ‘ श्रीस तो पुसे कीश पुनरपी हे कथासुधा भक्तसुनर पी सिन्धु लड्घितां प्राज्यबळनिधी वानरागमें जेविं शिवविधी. ” (मोमञ्जु ३० ) - ܢ ܢܝ ܢ ܢܝ -- ܐ -- , ܢ ܢܝ ܝ ܚ ܢ ܝ | ] ( 2؟ 9 ) 7 3f * “ भरत सुखविला भार झुर्तारलाः भजति कवि भवों याच सु-प्तरिला. बसुनि पितृपदों विश्व निवविलें, दुरित भिवविल, भद्र जिवविलें, ” ( मोमब्जु ६६)
- श्रित ? ( ७१९ ) [। V V V = V , -! ܢ ܢ ܚ ܢܝ ܢܝ ッ。ー]
- श्रित मयूरसे म्हणति जळद या, प्रभुसि देतसे भजनबळ दया.
करुनि ताप हा सकल पळवितो, अतिवदान्यता प्रकट कळवितो. ?? (मोमञ्जु ६९ )
- प्रमद्वारा ”* (७२०) जला-द्विरावृत्ता
[~-lں -- س --- lہ! --- lں --- ب - l --] ‘ सैौभाग्यसुन्दरी, गेलीस कां त्वरें ? पाहूं कुठे तुला काव्यात्म अप्सरे ? सैौन्दर्येनन्दिनी, तू, सर्वे जाणशी नैछुर्य का तुला शोभे प्रमढ़रे ?” (माजूग ९२)
- आनन्दकन्द ?* (७२१)[-1- ५ - ५ । -- ! - । - ५ - ७ ।।--]
- आनन्दकन्द लोकीं हा शाहुबाळ माझा, पाहूनि यास शोकीं झुलास होय ताजा. अन्धार गाढ भोर्ती, चिन्ता परी नको ती, हास्यप्रभेस ओती हा बालचन्द्र माझा.” (माजूग८०)