पीडीएफ सुरेशभट इन च्या सौजन्याने ३३३ वृत्तविहार कोट्रनि गरीबी असतां रानफुलांहीं शुङ्गारित राऔ ? बेमोल जवाहीर खुले रात्रिवितानी, तेथे चल राणी!” ( माजूग ६० वी कविता)
- हा प्रश्न कशाला? (यध १४७), ' मृत्यूस ” (यध १५१) या कविता या रात्रिविंतानवृत्तांत आहेत.
- कल्पना? (९९०) [ स्रग्विणी । वीरलक्ष्मी]
- देव नाही जगीं धर्म नाही तसा
कल्पना या खुळ्या मानसा यामधे ढोड्ग सारें भरे.” (पाआ ४९) पुरवणी [-- ب س -- ا ب ں --ں ں س-lب ب س ن ں --- ن ں ] ( ومجہ کq26qR” (Y *
- अिति मङ्गळ रुक्मिणि सेंवर सुन्दर कल्पनगे
कावे डिम्भ यदीन्द्रकृते चतुर प्रवरे सुभगे हरेि रुक्मिणि माळ समर्पित पल्लव नामफळं भवसंसृति नाशक खण्डमिदं किल पृष्टमलं (डिरुस्व ६/९७)
- सत्फल? (५१४. अ)
[ -- ܐ -- ܢ ܝ ܟ ܚ ܝ ܚ ܐ ں یہ --- نی --- ا ب س --- ب س -- l] “ श्रीहरि सुन्दर वल्लभ लाहुनि परमसुख विदमें पूर्वकृतामळ जोडि समागत हरिपद फळ लाभे भीमकि शोभत कल्पनगामळ विरचित कावे डिम्में सत्फळ संज्ञक खण्डमुताष्टममतिकळतर शोभे.” (डिरुस्व ८/४२) हें वृत्त मोदकवृत्ताला रातिमालावृत्ताची वा मालिनीच्या पहिल्या गणाची जोड देअन साधिल्यासारखें वाटतें.