अद्भुत दुनिया व्यवस्थापनाची
अद्भुत दुनिया
व्यवस्थापनाची
शरू रांगणेकर
अग्रणी प्रकाशन
औरंगाबाद.
ADBHUT DUNIYA VYAVASTHAPANASHI
© शरू रांगणेकर
३१,नीलांबर, ३७, पेडर रोड, मुंबई : ४०० ०२६.
e-mail: rangnekar@vsnl.com
website: wwwsharurangekar.com
- अनुवाद : अजिंत दाते
- प्रकाशक :
राजेंद्र वाणी,
अग्रणी प्रकाशन, एन-११, ई-११/३, मयूरनगर,
हडको, औरंगाबाद. मो. १३७२००६७८५
e-mail:rdwani123@rediffmail.com
- अक्षरजुळणी:
सिद्धी ग्राफिक्स अॅण्ड मल्टी सर्विसेस,
एन११, जी-९/२, नवजीवन कॉलनी,
हड़क़ो, औरंगाबाद.
• मुद्रक :
श्वेता कम्युनिकेशन अॅण्ड मल्टिसर्विसेस,
सिड़को एन-४, औरंगाबाद.
- मुखपृष्ठ व आतील व्यंगचित्रे :
विवेक मेहेत्रे
- प्रथमावृत्ती, डिसेंबर २०१०
- मूल्य : रु. ३००/-
- ज्यांच्या प्रोत्साहनामुळे हे पुस्तक येऊ शकले.
आज इतक्या वर्षांनंतर हे लेख पुन्हा वाचल्यावर लक्षात आले की, ते आजही वाचकांना रुचकर, उपयुक्त ठरतील. औरंगाबाद येथील अग्रणी प्रकाशनाचे प्रकाशक श्री. राजेंद्र वाणी यांनी हे पुस्तक प्रसिध्द करायची जबाबदारी घेतली आणि ते आज वाचकांपुढे येत आहे. त्यांचा मी आभारी आहे.
माझे परम मित्र श्री. किशोर आरास आणि माझी सेक्रेटरी सौ. मोनालिसा इराणी यांनी या पुस्तकावर शेवटचा हात फिरवून त्यात सुधारणा केल्या. त्यांच्याबद्दल येथे आभार व्यक्त करणे योग्य ठरेल.
या सदरांत मूळ इंग्रजी लेखांचा अनुवाद श्री. अजित दाते यांनी केला. कधी कधी मला वाटते की, हा अनुवाद मूळ लेखनापेक्षाही उत्कृष्ट झालेला आहे. तेव्हा शेवटी त्यांचेही आभार.
- शरू रांगणेकर
१. | नव्या युगाचे महाराज | १ |
२. | ओंडका आणि मासा | ५ |
३. | मालकाकडून वाटणारी भीती | ८ |
४. | आव्हान ‘बदलांचे | १३ |
५. | संस्था नावाचे जग | १८ |
६. | नोकरदारांची निवड | २२ |
७. | एक व्यवस्थापकीय चमत्कार | २७ |
८. | या संकटावर कशी मात करणार? | ३० |
९. | संकटाचे संधीत रूपांतर करा | ३५ |
१०. | आव्हान जागतिक स्पर्धेचे (भाग पहिला) | ३९ |
११. | आव्हान जागतिक स्पर्धेचे (भाग दुसरा) | ४३ |
१२. | उज्ज्वल भवितव्याची त्रिसूत्री | ४८ |
१३. | व्यवस्थापनासमोरील आव्हान | ५१ |
१४. | मनुष्यबळाचा आदर व विकास | ५५ |
१५. | बदलती व्यवस्थापन शैली | ५९ |
१६. | व्यवस्थापन पध्दतींतील बदल | ६२ |
१७. | महिला व्यवस्थापक | ६५ |
१८. | महिलांच्या यशाचे रहस्य | ६९ |
१९. | व्यवस्थापन चमचेगिरी'चे | ७२ |
२०. | चमचेगिरीचा वापर | ૧९६ |
२१. | समाजरचनेचा विपरीत परिणाम | ७९ |
२२. | मानसिकता बदलणे आवश्यक | ८३ |
२३. | तर्कशास्त्र:कामाचे,कर्मचाऱ्यांचे | ८८ |
२४. | सार्वजनिक उद्योग:काळ,आज व उद्या | ९२ |
२५. | 'शास्त्र'भ्रष्टाचाराचे | ९६ |
२६. | भ्रष्टाचाराचा शिष्टाचार व संस्था | १०० |
२७. | भ्रष्टाचार व त्याचे नियंत्रण | १०४ |
२८. | स्वेच्छा निवृत्ती:घर घर की कहानी | १०८ |
२९. | कर्मचारी :कामसू व 'प्रवासी' | ११२ |
३०. | हितगूज (भाग पहिला) | ११६ |
३१. | हितगूज (भाग दुसरा) | ११९ |
३२. | व्यवस्थापन शिक्षण:काल,आज व उद्या | १२३ |
३३. | व्यवस्थापन शिक्षणाचे भवितव्य | १२७ |
३४. | संवाद साधण्याची कला | १३१ |
३५. | दुसरं करिअर | १३५ |
३६. | माध्यम बर्ग व समाजाचे 'व्ययस्थापन' | १३९ |
३७. | व्यवस्थापकीय सल्लागार | १४३ |
३८. | उत्तम व्ययस्थापनाचं रहस्य | १४७ |
३९. | व्यवस्थापकीय 'धर्मांतर' | १५० |
४०. | व्यवस्थापन शैलीत बदल आवश्यक | १५३ |
४१. | व्यवस्थापकाचे गुणधर्म | १५७ |
४२. | युग बदल्या संबंधांचं | १६० |
४३. | एकविसावं शतक कोणाचं? | १६३ |
४४. | नूतन सहस्रकातील व्यवस्थापन | १६६ |
४५. | नूतन सहस्रकातील आव्हान | १६९ |
४६. | नोकरशाहीचं व्यवस्थापकीय प्रशिक्षण | १७२ |
४७. | स्वयंव्यवस्थापन (भाग पहिला) | १७६ |
४८. | स्वयंव्यवस्थापन (भाग दुसरा) | १७९ |
४९. | स्वयंव्यवस्थापन ( भाग तिसरा) | १८२ |
५०. | स्वयंव्यवस्थापनाची शैली | १८६ |
५१. | कामगार नेते आणि मनुष्यबळ विकास | १८८ |
५२. | मूल्यवृध्दी, व्यवस्थापन व कर्मचारी | १९१ |
५३. | व्यवस्थापन - संघर्षाचे | १९४ |
५४. | व्यवस्थापकीय भ्रष्टाचार : एक चिंतन | १९७ |
५५. | व्यवस्थापन आणि सेवाभाव | २०० |
५६. | सीमाविरहित जगातील व्यवस्थापन (भाग पहिला) | २०३ |
५७. | सीमाविरहित जगातील व्यवस्थापन (भाग दुसरा) | २०६ |
५८. | नोकरीबाबत स्थितप्रज्ञ राहा | २०८ |
५९. | स्वतःच्या कंपनीला ‘ओळखा' | २११ |
६०. | काम व क्षमतेचं समालोचन | २१४ |
६१. | नवी नोकरी स्वीकारताना | २१७ |
६२. | स्थलांतर शाप की वरदान? | २२० |
६३. | व्यवस्थापकीय सल्लागार आणि संस्था | २२४ |
६४. | संस्थेच्या समस्यांचे निदान | २२६ |
६५. | संस्थेच्या समस्यांवरील उपाययोजना | २२८ |
६६. | जागतिक दर्जाच्या संस्थांची वैशिष्ट्ये | २३१ |
६७. | मानव - व्यवस्थापनाची कला | २३५ |
६८. | मनुष्यबळ - व्यवस्थापनाची तीन सूत्रं | २३८ |
६९. | मनुष्यबळ व्यवस्थापन आणि सत्ता | २४१ |
७०. | व्यवस्थापन आणि नीतिमूल्ये | २४४ |
७१. | नीतिमूल्ये आणि आचारसंहिता | २४७ |
७२. | कुटुंब नियंत्रित उद्योगांचं भवितव्य | २५० |
७३. | व्यवस्थापकीय तणाव आणि त्यावरील उपाय | २५३ |
७४. | व्यवस्थापन ‘तणावा'चं | २५६ |
७५. | तणावांवर उपाय | २५८ |
७६. | युग ‘एकलव्या'चं | २६१ |
७७. | भारतीय नीतिमूल्ये समज - गैरसमज | २६४ |
७८. | व्यवस्थापकीय शिक्षणाचा प्रवास | २६७ |
७९. | समारोप | २७० |